तँवर तोमर राजवंश ने 736 ई. से 1193 ई. तक दिल्ली पर शासन किया। अनंगपाल प्रथम से प्रारंभ होकर तेजपाल द्वितीय तक के शासकों ने उत्तर भारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोहम्मद गौरी के आक्रमणों तक इन्होंने वीरता से राज्य की रक्षा की।
विषय सूची
- तोमर राज्य की स्थापना और प्रारंभिक शासक
- अनंगपाल प्रथम का युग
- वासुदेव से जयपाल तक
- कुमारपाल और राजपूत संघ
- अनंगपाल द्वितीय का स्वर्णिम काल
- पृथ्वीराज तोमर से चाहडपाल
- तराइन के युद्ध और पतन
तोमर राज्य की स्थापना और प्रारंभिक शासक
तँवर तोमर राजवंश का इतिहास भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। पुस्तक के लेखक श्री हरिहर निवास द्विवेदी ने “तँवर वंश का इतिहास” लेखक नागोरीदास बावड़ा ने 736 ई. माना है। तँवर (तोमर) राजवंश का इतिहास राजनीतिक व सांस्कृतिक इतिहास लेखक डा. महेन्द्र सिंह तँवर खेतासर ने भी 736 ई. में दिल्ली तोमर राज्य की स्थापना होना लिखा है।
तँवर तोमर राजवंश की स्थापना के साथ ही उत्तर भारत में एक नए युग का प्रारंभ हुआ। यह वंश न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था बल्कि सांस्कृतिक और स्थापत्य के क्षेत्र में भी इसका योगदान अविस्मरणीय है।
विकिपीडिया के दिल्ली सल्तनत इतिहास के अनुसार, तोमर शासकों ने दिल्ली को एक महत्वपूर्ण नगर के रूप में विकसित किया जो बाद में भारत की राजधानी बनी।
अनंगपाल प्रथम का युग
अनंगपाल तोमर प्रथम (736 ई. से 754 ई.) ने यमुना के किनारे अनंगपुर में अपनी राजधानी बसाई। जानपुर के तटबन्ध, कालिका देवी मंदिर बनाना, अपने महल के द्वार पर दो सिंहों की मूर्ति बनवाकर उनके गले में घन्टी लगाकर फरियादी द्वारा घन्टी बजाने से फरियादी की बात सुनना आदि शासनकाल की व्यवस्थायें थीं।
राजेन्द्र सिंह तंवर रायली के एकत्रित जानकारी के अनुसार, अनंगपाल प्रथम के बीस पुत्रों में से विभिन्न पुत्रों ने अलग-अलग क्षेत्रों में अपने राज्य स्थापित किए। पुडांवों व अत्तवर के बीच तेजोरा तेजपाल ने, इन्दूराज ने इन्द्रादि, अयलराज ने भखतपुर आमुद के बीच अनेर, रामवंज ने तारानाद अजमेर, ढोषद ने हांसी इन्द्रप्रस्थ के वंशज इन्द्रोलिया तँवर अलीगढ़, बदायूं, बरेली, शाहजहाँपुर आदि जिलों व मध्यप्रदेश में बसे हुये है, सोम के वंशज सोमवाल तँवर मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरपुर में बसे हुये हैं।
तालिका 1: प्रारंभिक तोमर शासक
शासक | शासनकाल | प्रमुख उपलब्धियाँ |
---|---|---|
अनंगपाल प्रथम | 736-754 ई. | अनंगपुर की स्थापना, कालिका मंदिर |
वासुदेव | 754-773 ई. | 18 वर्ष का स्थिर शासन |
गंगदेव | 773-794 ई. | स्वतंत्र शासन, 21 वर्ष |
पृथ्वीमल | 794-814 ई. | पाल राजाओं से संघर्ष |
जयदेव | 814-834 ई. | पाल अधीनता काल |
इनके पाटवी पुत्र वासदेव इनके उपरान्त गद्दी पर विराजे। तँवर तोमर राजवंश की यह प्रारंभिक अवधि राज्य निर्माण और विस्तार की थी।
वासुदेव से जयपाल तक
राजा वासुदेव (754 ई. से 773 ई.) के शासन काल का 18 साल का समय रहा इनके समय में बंगाल में पाल वंश का साम्राज्य था गोपाल ने पाल साम्राज्य की नींव रखी थी। गोपाल के बाद 770 ई. में धर्मपाल पालवंश का शासक बना था।
राजा गंग देव (773 ई. से 794 ई.) ने 21 साल शासन किया। उस समय पालवंश में धर्मपाल का साम्राज्य था। धर्मपाल व प्रतिहार शासक वत्सराज में युद्ध हुआ था जिसमें धर्मपाल पराजित होकर चला गया था। राजा गंगदेव अपने समय में स्वतंत्र शासक रहे।
राजा पृथ्वीमल (794 ई. से 814 ई.) दिल्ली सिंहासन पर विराजे उस समय बदलती परिस्थितिया थीं। पालराजा धर्मपाल उत्तर भारत में साम्राज्य का विस्तार कर चुका था। धर्मपाल ने राजा पृथ्वीमल को हराकर अपना करदा राजा बना लिया था।
विकिपीडिया के पाल साम्राज्य के अनुसार, इस काल में पाल शासक उत्तर भारत में अत्यंत शक्तिशाली थे और अनेक छोटे राज्यों को अपने अधीन कर चुके थे।

पृथ्वीमल के स्वर्गवास पश्चात दिल्ली के सिंहासन पर राजा जयदेव (814 ई. से 834 ई.) गद्दी पर बैठे। यह भी बंगाल के पाल राजाओं के अधीन रहे। बंगाल के राजा धर्मपाल की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी देवपाल (810- 850 ई.) राजा बने।
इस काल के अन्य महत्वपूर्ण शासक:
- राजा नरपाल (834 ई. से 849 ई.): इनके समय में दिल्ली पर कोई आक्रमण नहीं हुआ
- राजा उदयराज (849 ई. से 875 ई.): स्वतंत्र शासक के रूप में राज्यारोहण
- राजा आइछ्छ देव (875 ई. से 897 ई.): विभिन्न वंशावलियों में बच्छ, बच्छहर, बच्छराज नामों से भी संबोधित
- राजा पीपलराज देव (897 ई. से 919 ई.): स्वयं की मुद्रा संचालित की
- राजा रघुपाल (919 ई. से 940 ई.): शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया
तँवर तोमर राजवंश के ये शासक अपने समय की चुनौतियों का सामना करते हुए राज्य की रक्षा करते रहे।
कुमारपाल और राजपूत संघ
सुलक्षण पाल तोमर (979 ई. से 1005 ई.) राजा गोपाल देव के पश्चात दिल्ली की राज सिंहासन पर 979 ई में विराजमान हुये। उन्होंने शासन सम्भाला। अपने शासनकाल में स्वयं की मुद्राएं चलाई जिन पर ‘श्री सल्लणवाल देव अंकित मिलता है।
इनके समय में महमूद ने हिन्दू शाही के जयपाल को पराजित कर कर वसूला किया। उत्तरी भारत के राजाओं ने एक संघ बनाया जिसे प्रथम ‘राजपूत संघ’ कहते हैं। इसमें दिल्ली के राजा सुलक्षण पाल तोमर, शाकम्भरी के राजा दुर्लभ राज चौहान द्वितीय तथा कालिंजर के राजा ने अपनी अपनी सेनायें जयपाल के सहयोग में भेजी।
जयपाल देव तोमर (1005 ई. से 1021 ई.) के समय में आनन्दपाल ने अनेक राजाओं उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, कालिंजर, दिल्ली, अजमेर को पुनः युद्ध निमन्त्रण भेजा। महमूद गजनवी ने 1009 में दिल्ली की ओर कूच किया जिससे सूचना जयपाल तोमर को मिली। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। राजा जयपाल तोमर महमूद गजनवी को आगे प्रदेश की राजधानी की ओर बढ़ने से रोकने में तथा उसके बढ़ने के संकल्प को रोकने में सफल हुये।
तालिका 2: महमूद गजनवी के आक्रमण और तोमर प्रतिरोध
वर्ष | घटना | परिणाम |
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998 ई. | प्रथम राजपूत संघ | जयपाल की पराजय |
1009 ई. | दिल्ली पर आक्रमण | तोमर प्रतिरोध सफल |
1018 ई. | मथुरा पर आक्रमण | लूटपाट के बाद वापसी |
1024 ई. | सोमनाथ आक्रमण | मंदिर की लूट |
कुमारपाल देव उर्फ महिपाल (1021 ई. से 1051 ईस्वी) वर्ष 1021 में जयपाल देव की मृत्यु के पश्चात दिल्लीपति बने। कुमारपालदेव के समय में दिल्ली की स्थिति तुर्कों के आक्रमण से नाजुक थी।
हांसी का पतन: अनंगपाल प्रथम के राजकुमार दुष्णद ने हांसी को बसाया था। हांसी के सामंत ने मसूद का मुकाबला करने का दृढ़ संकल्प लिया, गढ़ की रक्षा के लिए महमूद के पुत्र मसूद के साथ घोर युद्ध हुआ। 12 दिन के युद्ध के पश्चात 01 जनवरी 1038 को हांसी के गढ़ का पतन हुआ।
चतुर्थ राजपूत संघ: कुंवरपाल ने यामिनी वंश के गृह कलेश से मौके का लाभ उठाते हुये एक बार फिर राजपूत राजाओं को आमन्त्रित किया। भोज परमार, कलचुरि कर्ण, नाडोल के चाहमान अणिहिल ने कुमारपाल के नेतृत्व में सेना एकत्रित की। सन 1043 ई. में मौदूद से हांसी, थानेश्वर आदि स्थान छीन लिये।
कनिंघम अनुश्रुति के अनुसार कुमार उर्फ कर्णपाल के छह राजकुमार थे जिन्होंने अपने-अपने नाम से अलग-अलग नगर बसाये थे। तँवर तोमर राजवंश का यह विस्तार उनकी शक्ति का प्रमाण था।
अनंगपाल द्वितीय का स्वर्णिम काल
अनंगपाल द्वितीय (1051 ई. से 1081 ई.) का शासनकाल तँवर तोमर राजवंश के इतिहास में स्वर्णिम युग माना जाता है। महरौली के लौह स्तम्भ पर एक लेख प्राप्त हुआ है उसके अनुसार वि.स. 1109 अर्थात 1052 ई. में अनंगपाल दिल्ली पर राज्य कर रहा था उस वर्ष उसने उस लौह स्तम्भ की स्थापना की।
अनंगपाल द्वितीय ने अपने शासनकाल में निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य किए:
- राजधानी अनंगपुर से हटाकर योगिनीपुर और महिपालपुर के बीच दिल्लीकापुरी स्थापित की
- लौह स्तम्भ की स्थापना
- अनंगताल सरोवर की स्थापना
- अनेक महल और मंदिरों का निर्माण
विकिपीडिया के लौह स्तंभ के अनुसार, यह स्तंभ भारतीय धातुकर्म की उत्कृष्टता का प्रमाण है और आज भी जंग रहित है।
महाराजा अनंगपाल की मुद्राओं में एक ओर अश्वारोही के ऊपर “श्री समन्तदेव” लिखा है। दूसरी ओर “श्री दिल्लीदेव” लिखा है। महाराजा अनंगपाल के तीन पुत्र थे – तेजपाल (सबसे बड़े), उमजी और सल्लिवाहन (सल्हूत, सलवन)।
तेजपाल प्रथम (1081 ई. से 1105 ई.) महाराजा अनंगपाल द्वितीय के पश्चात दिल्ली के महाराजा बने। तेजपाल के समय में चौहान राजा विग्रहराज चतुर्थ व पृथ्वीराज प्रथम थे। इस काल में दिल्ली पर कोई बड़ा आक्रमण नहीं हुआ।
महिपाल (1105 ई. से 1130 ई.) ने कुतुब मीनार से दो मील दूर उत्तर पूर्व की ओर महिपालपुर बसाया। महिपालपुर में शिव मन्दिर बनवाया जिसको बाद में तोड़कर 1231 में इल्तुतमिश ने मकबरा बना दिया था।
विजयपाल (1130 ई. से 1151 ई.) के कार्यकाल में मथुरा में श्री कृष्ण के जन्म स्थल पर गज नामक व्यापारी द्वारा मन्दिर का निर्माण करवाया गया।
पृथ्वीराज तोमर से चाहडपाल
मदनपाल देव (1151 ई. से 1167 ई.) के समकालीन सम्राट विग्रहराज चतुर्थ थे। मदनपाल तोमर ने विग्रहराज चतुर्थ से मिलकर हांसी पहुंचे तुर्कों की सेना से युद्ध हुआ, तुर्कों को भगा दिया। विग्रहराज चौहान की वीरता से प्रभावित होकर दिल्ली लाये स्वयं अपनी पुत्री देशल देवी का विवाह विग्रहराज चौहान से विधिवत कर दिया।
इस वैवाहिक संबंध ने तोमर-चौहान संबंधों को मजबूत किया। कुछ समय बाद अपरगांगेय का जन्म हुआ जो बाद में शाकम्भरी का राजा बना। मदनपाल तोमर ने जिनचन्द सूरी (जैन) को दिल्ली निमंत्रण दिया तथा उनके प्रभाव से योगिनीपुर के योग माया मन्दिर में मांस व मदिरा बलि बन्द हुई।
पृथ्वीराज तोमर (1167 ई. से 1189 ई.) महिपाल तोमर के उत्तराधिकारी थे। पृथ्वीराज तोमर की पांच सहित अश्वारोही के साथ मुद्राएं ‘श्रीपृथ्वीराज देव” दूसरी ओर “असवार श्री सामन्त देव” लिखा प्राप्त होती हैं।
पृथ्वीराज तोमर के शासनकाल के समय उनका भांजा अपर गांगेय चौहान शाकम्भरी पर राज्य कर रहा था। विग्रहराज चतुर्थ के भाई जागदेव चौहान के पुत्र पृथ्वी भट्ट ने अपने नाना चितोड़ के राजा गुहिलोत किल्हण के सहयोग से हांसी के राजा वस्तुपाल तोमर पर आक्रमण किया। 1168 में अपरगांगेय को मार डाला। नागार्जुन भाग कर अपने नाना पृथ्वीराज तोमर के पास दिल्ली पहुंचा।
चाहडपाल तोमर (1189 ई. से 1192 ई.) ने पृथ्वीराज तोमर के स्वर्गवास पर दिल्ली का साम्राज्य उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त किया। इतिहास में इन्हें कई नामों से लिखा गया है – खंडी, वन्द्र, गोचन्द, गवन्द, गोविन्द, खाण्डेराव, चाहडदेव आदि।
चाहडपाल के समय अजयमेरु (अजमेर) के शासक पृथ्वीराज चौहान शक्तिशाली हो गये थे। शहाबुद्दीन गौरी ने 1189 ई. में तंवरहिन्द (सरहिन्द या बठिंडा) पर आक्रमण कर दिया और गढ़ को हस्तगत कर लिया।
तराइन के युद्ध और पतन
तँवर तोमर राजवंश के इतिहास में तराइन के युद्ध निर्णायक सिद्ध हुए। चाहडपाल तोमर ने अपने राज्य संघ के समस्त राजाओं को संगठित करना प्रारम्भ किया। चाहडपाल स्वयं पृथ्वीराज चौहान के पास अजमेर गया।
प्रथम तराइन युद्ध (1191 ई.)
1191 ई. में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया। तराइन के मैदान में राजपूतों की सेना का नेतृत्व पृथ्वीराज चौहान ने किया। सुल्तान शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी ने उस हाथी पर आक्रमण किया जिस पर चाहडपाल तोमर (गोविन्दराव खाण्डेराव) सवार था। चाहडपाल ने भी गौरी पर भाले से आक्रमण किया जिसकी पीड़ा सुल्तान गौरी सहन नहीं कर पाया और घोड़े की पीठ से गिरने वाला था कि एक खल्जी युवक ने पहचान लिया और युद्ध क्षेत्र से भगा ले गया।
राजपूत सेना विजयी हुई व तंवरहिन्द को तुर्कों से मुक्त कराया गया।
द्वितीय तराइन युद्ध (1192 ई.)
मोहम्मद गौरी ने 1192 में पुनः आक्रमण की योजना बनाई। उस समय उत्तरी भारत में राजाओं में फूट उत्पन्न हो गयी थी। कन्नौज का राजा जयचन्द पृथ्वीराज चौहान को सबक सिखाना चाहता था।
मोहम्मद गौरी ने रात्रि में अचानक आक्रमण किया। राजपूत सेना तैयार नहीं थी। इस युद्ध में चाहडपाल 1 मार्च 1192 को (काल्गुण पूर्णिमा होली विक्रम संवत 1249) दिन के 2-3 बजे स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए।
पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध का परिणाम समझ लिया। हाथी को छोड़कर घोड़े की सवारी की तथा भागा जिसको शहाबुद्दीन के सैनिकों ने सरस्वती नदी के किनारे पकड़ लिया, बाद में मार दिया।
तेजपाल द्वितीय (1192-1193 ई.) तराइन के युद्ध का परिणाम देखकर भागकर दिल्ली आ गया। 3 मार्च 1192 को दिल्ली का साम्राज्य संभाला। मोहम्मद गौरी ने 17 मार्च 1192 को दिल्ली पर आक्रमण कर तेजपाल को पराजित किया। एक वर्ष पश्चात 1193 में दिल्ली छोड़नी पड़ी।
तेजपाल के अचल, ब्रह्म पुत्र हुए। अचल ब्रह्म ने हरिराज चौहान को सहायता दी। कुतुबुद्दीन के आक्रमण से भागकर असीगढ़ चले गये। उनके वंशज वीरसिंहदेव ने ग्वालियर साम्राज्य की नींव डाली।
इस प्रकार 457 वर्षों के गौरवशाली शासन के बाद तँवर तोमर राजवंश का दिल्ली से शासन समाप्त हुआ। परंतु इस वंश की शाखाएं भारत के विभिन्न भागों में आज भी विद्यमान हैं।