चीन भारत String of Pearls रणनीति से पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश समेत 9 स्थानों पर भारत को घेरा। भारत ने Necklace of Diamonds से जवाब दिया – ओमान, ईरान, सेशेल्स, मॉरीशस में नौसैनिक उपस्थिति। हिंद महासागर में दोनों महाशक्तियों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज।
विषय सूची
- परिचय: हिंद महासागर में महाशक्ति प्रतिस्पर्धा
- चीन की String of Pearls रणनीति
- 9 स्थान जहां चीन ने भारत को घेरा
- भारत की काउंटर रणनीति – Necklace of Diamonds
- पाकिस्तान – चीन का सबसे मजबूत मोती
- श्रीलंका और हंबनटोटा की कहानी
- म्यांमार और बांग्लादेश में चीनी पैठ
- भारत के रणनीतिक जवाब
- आर्थिक और सैन्य निहितार्थ
- भविष्य की चुनौतियां और अवसर
- निष्कर्ष
परिचय: हिंद महासागर में महाशक्ति प्रतिस्पर्धा {#introduction}
21वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा हिंद महासागर में भारत और चीन के बीच चल रही है। चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी ‘String of Pearls’ (मोतियों की माला) रणनीति के तहत भारत को 9 प्रमुख स्थानों से घेरने की कोशिश की है, जबकि भारत ने ‘Necklace of Diamonds’ (हीरों का हार) से इसका जवाब दिया है।
newsheadlineglobal.com की इस विशेष मेगा स्टोरी में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे चीन भारत घेरा बना रहा है और भारत किस तरह से इस चुनौती का सामना कर रहा है। यह केवल दो देशों के बीच की प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि एशिया के भविष्य को निर्धारित करने वाली महत्वपूर्ण प्रतियोगिता है।
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) वैश्विक व्यापार का केंद्र है जहां से दुनिया का 80% तेल व्यापार और 50% कंटेनर यातायात गुजरता है। इस रणनीतिक महत्व को देखते हुए चीन और भारत दोनों अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा रहे हैं।
चीन की String of Pearls रणनीति {#string-of-pearls}
रणनीति की उत्पत्ति और विकास
String of Pearls शब्द पहली बार 2005 में अमेरिकी रक्षा ठेकेदार Booz Allen Hamilton की एक रिपोर्ट में आया था। यह चीन की उस रणनीति को दर्शाता है जिसके तहत वह हिंद महासागर में भारत के चारों ओर नौसैनिक ठिकाने और वाणिज्यिक सुविधाएं स्थापित कर रहा है।
चीन भारत घेरा बनाने की इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना और हिंद महासागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति स्थापित करना है। राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विशेषज्ञों के अनुसार, यह चीन की व्यापक समुद्री महत्वाकांक्षा का हिस्सा है।
Belt and Road Initiative का समुद्री घटक
चीन की Belt and Road Initiative (BRI) का समुद्री सिल्क रोड घटक String of Pearls रणनीति को और मजबूत करता है। इसके तहत चीन ने हिंद महासागर के तटीय देशों में अरबों डॉलर का निवेश किया है।
Maritime Silk Road के नाम से जानी जाने वाली यह परियोजना चीन को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ती है, जिसमें भारत को दरकिनार करने की स्पष्ट कोशिश दिखाई देती है।
दोहरे उपयोग की सुविधाएं
चीन भारत घेरा बनाने के लिए ‘दोहरे उपयोग’ की रणनीति अपना रहा है। वाणिज्यिक बंदरगाहों के रूप में विकसित की जा रही सुविधाएं आसानी से सैन्य उपयोग के लिए परिवर्तित की जा सकती हैं।
चीन विदेश मंत्रालय हमेशा इन आरोपों को नकारता है, लेकिन जिबूती में चीनी नौसैनिक अड्डे की स्थापना ने इन आशंकाओं को बल दिया है।
9 स्थान जहां चीन ने भारत को घेरा {#nine-locations}
1. ग्वादर बंदरगाह, पाकिस्तान
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित ग्वादर बंदरगाह चीन की String of Pearls का सबसे महत्वपूर्ण मोती है। China-Pakistan Economic Corridor (CPEC) के तहत विकसित यह बंदरगाह चीन को अरब सागर में सीधी पहुंच देता है।
$62 बिलियन के निवेश से विकसित यह बंदरगाह न केवल व्यापारिक महत्व रखता है बल्कि चीनी नौसेना के लिए संभावित ठिकाना भी है। भारत की पश्चिमी समुद्री सीमा के निकट इसकी उपस्थिति रणनीतिक चिंता का विषय है।
2. हंबनटोटा बंदरगाह, श्रीलंका
श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह चीन की ‘ऋण जाल कूटनीति’ का प्रमुख उदाहरण है। कर्ज न चुका पाने के कारण श्रीलंका को यह बंदरगाह 99 साल के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा।
भारत के दक्षिणी तट से मात्र कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह बंदरगाह चीन भारत घेरा रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिजनेस और अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ इसे आर्थिक उपनिवेशवाद का उदाहरण मानते हैं।
3. चटगांव बंदरगाह, बांग्लादेश
बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह में चीन ने भारी निवेश किया है। यह बंदरगाह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए रणनीतिक खतरा पैदा करता है।
चीन ने यहां कंटेनर टर्मिनल और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास में सहायता की है, जिससे बंगाल की खाड़ी में उसकी उपस्थिति मजबूत हुई है।
4. क्याउकप्यू बंदरगाह, म्यांमार
म्यांमार के राखीन राज्य में स्थित क्याउकप्यू बंदरगाह चीन को मलक्का जलडमरूमध्य को बाईपास करने का विकल्प देता है। यहां से चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा शुरू होता है।
इस बंदरगाह से चीन के युन्नान प्रांत तक तेल और गैस पाइपलाइन बिछाई गई है, जो चीन की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
5. कोको द्वीप, म्यांमार
अंडमान द्वीप समूह के उत्तर में स्थित कोको द्वीप पर चीनी उपस्थिति की रिपोर्टें चिंताजनक हैं। माना जाता है कि यहां चीन ने निगरानी उपकरण स्थापित किए हैं।
भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए यह स्थान आदर्श है। Indian Navy ने इस क्षेत्र में अपनी निगरानी बढ़ाई है।
6. सिहानोकविले बंदरगाह, कंबोडिया
कंबोडिया के सिहानोकविले बंदरगाह में चीनी निवेश और उपस्थिति लगातार बढ़ रही है। यह थाईलैंड की खाड़ी में चीन को रणनीतिक पहुंच देता है।
चीन भारत घेरा रणनीति में यह बंदरगाह दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
7. मालदीव में चीनी परियोजनाएं
मालदीव में चीन ने कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया है, जिसमें चीन-मालदीव मैत्री सेतु शामिल है। भारत के लिए यह विशेष चिंता का विषय है क्योंकि मालदीव भारत के बहुत निकट है।
हाल के वर्षों में मालदीव की चीन समर्थक नीतियों ने भारत की चिंताएं बढ़ाई हैं। टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के नाम पर चीनी उपस्थिति बढ़ रही है।
8. जिबूती में नौसैनिक अड्डा
जिबूती में चीन का पहला विदेशी सैन्य अड्डा 2017 में स्थापित हुआ। हालांकि यह सीधे भारत की सीमा से दूर है, लेकिन हिंद महासागर के प्रवेश द्वार पर इसकी स्थिति रणनीतिक है।
यह अड्डा चीन को अदन की खाड़ी और लाल सागर में स्थायी उपस्थिति देता है, जो वैश्विक शिपिंग के लिए महत्वपूर्ण मार्ग है।
9. ईरान के चाबहार निकट गतिविधियां
हालांकि चाबहार बंदरगाह भारत द्वारा विकसित किया जा रहा है, लेकिन चीन ने ईरान के अन्य हिस्सों में अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। 25 साल के रणनीतिक समझौते के तहत चीन ईरान में भारी निवेश कर रहा है।
यह चीन भारत घेरा रणनीति को पश्चिम की ओर विस्तार देता है और भारत के चाबहार प्रोजेक्ट के लिए चुनौती पैदा करता है।
भारत की काउंटर रणनीति – Necklace of Diamonds {#indian-counter-strategy}
भारत का रणनीतिक जवाब
चीन की String of Pearls के जवाब में भारत ने ‘Necklace of Diamonds’ रणनीति विकसित की है। इसके तहत भारत हिंद महासागर में अपने नौसैनिक ठिकाने और रणनीतिक साझेदारियां मजबूत कर रहा है।
भारत का फोकस मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी बढ़ाने पर है। स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा भी प्राथमिकता है।
प्रमुख भारतीय ठिकाने और साझेदारियां
भारत के रणनीतिक स्थान:
स्थान | देश | महत्व | सुविधाएं |
---|---|---|---|
दुकम बंदरगाह | ओमान | अरब सागर में पहुंच | नौसैनिक सुविधाएं |
चाबहार बंदरगाह | ईरान | मध्य एशिया कनेक्टिविटी | व्यापारिक और सैन्य |
असम्प्शन द्वीप | सेशेल्स | हिंद महासागर निगरानी | निगरानी स्टेशन |
अगालेगा द्वीप | मॉरीशस | दक्षिणी हिंद महासागर | हवाई पट्टी और जेटी |
सबांग बंदरगाह | इंडोनेशिया | मलक्का जलडमरूमध्य | नौसैनिक पहुंच |
नाह शु बंदरगाह | वियतनाम | दक्षिण चीन सागर | जहाज मरम्मत |
चांगी नौसैनिक बेस | सिंगापुर | रणनीतिक स्थान | लॉजिस्टिक सहयोग |
QUAD और अन्य बहुपक्षीय पहल
भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ QUAD समूह के माध्यम से चीन भारत घेरा रणनीति का मुकाबला किया है। यह समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में “स्वतंत्र और खुले” समुद्री मार्गों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
QUAD के अलावा, भारत ने SAGAR (Security and Growth for All in the Region) पहल के माध्यम से हिंद महासागर के देशों के साथ संबंध मजबूत किए हैं।
पाकिस्तान – चीन का सबसे मजबूत मोती {#pakistan-pearl}
CPEC की रणनीतिक महत्ता
China-Pakistan Economic Corridor (CPEC) चीन की BRI का प्रमुख घटक है और चीन भारत घेरा रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। $62 बिलियन की यह परियोजना चीन को ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से अरब सागर तक सीधी पहुंच देती है।
CPEC न केवल आर्थिक गलियारा है बल्कि इसके रणनीतिक निहितार्थ भारत के लिए गंभीर चुनौती हैं। यह कश्मीर के विवादित क्षेत्र से होकर गुजरता है, जिस पर भारत आपत्ति जताता रहा है।
ग्वादर का सैन्यीकरण
ग्वादर बंदरगाह के सैन्यीकरण की आशंकाएं लगातार बढ़ रही हैं। पाकिस्तान ने ग्वादर की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा डिवीजन का गठन किया है, जिसमें 15,000 सैनिक शामिल हैं।
यात्रा और परिवहन मार्गों की सुरक्षा के नाम पर बढ़ती सैन्य उपस्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है। चीनी नौसेना के जहाज नियमित रूप से ग्वादर का दौरा कर रहे हैं।
भारत की चिंताएं
ग्वादर से भारत के पश्चिमी तट की निगरानी आसान हो जाती है। मुंबई जैसे महत्वपूर्ण बंदरगाह और भारतीय नौसेना के पश्चिमी कमान मुख्यालय ग्वादर की रेंज में आते हैं।
इसके अलावा, CPEC भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। भारत ने इस पर लगातार आपत्ति जताई है।
श्रीलंका और हंबनटोटा की कहानी {#sri-lanka-story}
ऋण जाल कूटनीति का उदाहरण
हंबनटोटा बंदरगाह चीन की ‘ऋण जाल कूटनीति’ का सबसे स्पष्ट उदाहरण है। श्रीलंका ने चीन से $1.1 बिलियन का कर्ज लेकर इस बंदरगाह का निर्माण किया, लेकिन कर्ज न चुका पाने के कारण 2017 में इसे 99 साल के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा।
यह घटना चीन भारत घेरा रणनीति की सफलता का उदाहरण बनी और अन्य देशों के लिए चेतावनी भी। पर्यावरण और विकास परियोजनाओं के नाम पर कर्ज के जाल में फंसाना चीन की रणनीति का हिस्सा है।
कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट
हंबनटोटा के अलावा, चीन ने कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट में भी भारी निवेश किया है। $1.4 बिलियन की यह परियोजना श्रीलंका में चीनी प्रभाव को और मजबूत करती है।
यह कृत्रिम द्वीप परियोजना श्रीलंका को एक वित्तीय हब बनाने का दावा करती है, लेकिन भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है।
भारत की प्रतिक्रिया
श्रीलंका में बढ़ते चीनी प्रभाव के जवाब में भारत ने अपनी ‘Neighbourhood First’ नीति को मजबूत किया है। भारत ने श्रीलंका को आर्थिक संकट के दौरान $4 बिलियन की सहायता प्रदान की।
भारत ने त्रिंकोमाली बंदरगाह के विकास में रुचि दिखाई है और कोलंबो के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाया है। मनोरंजन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भी संबंध मजबूत किए जा रहे हैं।
म्यांमार और बांग्लादेश में चीनी पैठ {#myanmar-bangladesh}
म्यांमार में चीनी प्रभाव
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद चीन का प्रभाव और बढ़ा है। क्याउकप्यू बंदरगाह के अलावा, चीन ने म्यांमार में कई अन्य परियोजनाओं में निवेश किया है।
चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC) के तहत चीन ने रेलवे, सड़क और ऊर्जा परियोजनाओं में भारी निवेश किया है। यह चीन भारत घेरा रणनीति का पूर्वी हिस्सा है।
बांग्लादेश में बढ़ता चीनी निवेश
बांग्लादेश में चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है। चटगांव बंदरगाह के अलावा, चीन ने पद्मा सेतु और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया है।
खेल और विकास परियोजनाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में चीनी उपस्थिति बढ़ रही है। बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति इसे भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है।
भारत की चुनौतियां
म्यांमार और बांग्लादेश में चीनी प्रभाव भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा के लिए चुनौती है। ‘चिकन नेक’ के नाम से जाना जाने वाला सिलीगुड़ी कॉरिडोर विशेष रूप से संवेदनशील है।
भारत ने Act East Policy के तहत इन देशों के साथ संबंध मजबूत करने की कोशिश की है, लेकिन चीन की आर्थिक ताकत एक बड़ी चुनौती है।
भारत के रणनीतिक जवाब {#indian-strategic-response}
नौसैनिक आधुनिकीकरण
चीन भारत घेरा रणनीति के जवाब में भारत ने अपनी नौसेना के आधुनिकीकरण को तेज किया है। स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत का निर्माण इसका उदाहरण है।
भारत ने पनडुब्बी बेड़े के विस्तार, P-8I निगरानी विमानों की खरीद और समुद्री निगरानी क्षमताओं के विकास में निवेश बढ़ाया है। Ministry of Defence के अनुसार, नौसैनिक बजट में लगातार वृद्धि हो रही है।
द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास
भारत ने हिंद महासागर के देशों के साथ नौसैनिक अभ्यासों की आवृत्ति बढ़ाई है:
- SLINEX – श्रीलंका के साथ
- JIMEX – जापान के साथ
- MALABAR – अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ
- VARUNA – फ्रांस के साथ
- INDRA – रूस के साथ
सूचना साझाकरण तंत्र
भारत ने गुरुग्राम में Information Fusion Centre – Indian Ocean Region (IFC-IOR) की स्थापना की है। यह केंद्र समुद्री डोमेन जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों के साथ सूचना साझा करता है।
21 देशों और 22 बहुराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करते हुए, यह केंद्र हिंद महासागर में सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
आर्थिक और सैन्य निहितार्थ {#economic-military-implications}
व्यापार मार्गों पर प्रभाव
चीन भारत घेरा रणनीति का सबसे बड़ा प्रभाव समुद्री व्यापार मार्गों पर पड़ता है। भारत का 95% व्यापार समुद्री मार्गों से होता है, और चीनी नौसैनिक उपस्थिति इसके लिए संभावित खतरा है।
मलक्का जलडमरूमध्य, होर्मुज जलडमरूमध्य और अन्य महत्वपूर्ण चोक पॉइंट्स पर नियंत्रण की होड़ तेज हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन के नियमों के बावजूद तनाव बढ़ रहा है।
ऊर्जा सुरक्षा चुनौतियां
भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 85% आयात करता है, जिसका अधिकांश हिस्सा मध्य पूर्व से समुद्री मार्ग से आता है। चीनी नौसैनिक उपस्थिति इस ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला के लिए खतरा है।
दोनों देश हिंद महासागर में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। वैकल्पिक ऊर्जा मार्गों का विकास प्राथमिकता बन गई है।
रक्षा बजट पर दबाव
चीन भारत घेरा रणनीति के कारण भारत को अपने रक्षा बजट में वृद्धि करनी पड़ रही है। नौसैनिक आधुनिकीकरण और नई क्षमताओं के विकास में भारी निवेश की आवश्यकता है।
2024-25 के बजट में रक्षा आवंटन में 4.72% की वृद्धि की गई है, जिसमें नौसेना को विशेष प्राथमिकता दी गई है।
भविष्य की चुनौतियां और अवसर {#future-challenges}
तकनीकी प्रतिस्पर्धा
समुद्री निगरानी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर युद्ध क्षमताओं में प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है। दोनों देश उन्नत तकनीकों में निवेश कर रहे हैं।
अंडरवाटर ड्रोन, सैटेलाइट निगरानी और क्वांटम संचार जैसी तकनीकों में चीन की बढ़त भारत के लिए चुनौती है। भारत को इन क्षेत्रों में तेजी से विकास करना होगा।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
हिंद महासागर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दोनों देशों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। समुद्री जल स्तर में वृद्धि और चरम मौसम घटनाएं नौसैनिक संचालन को प्रभावित कर रही हैं।
पर्यावरण सहयोग की आवश्यकता और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है।
बहुपक्षीय सहयोग के अवसर
IORA (Indian Ocean Rim Association) और अन्य बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से सहयोग के अवसर हैं। समुद्री डकैती, आतंकवाद और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सहयोग आवश्यक है।
भारत और चीन दोनों को यह समझना होगा कि हिंद महासागर की सुरक्षा और स्थिरता दोनों के हित में है।
निष्कर्ष {#conclusion}
चीन की String of Pearls रणनीति और भारत की Necklace of Diamonds प्रतिक्रिया 21वीं सदी की महान शक्ति प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है। चीन भारत घेरा बनाने की कोशिश में 9 प्रमुख स्थानों पर अपनी उपस्थिति स्थापित कर चुका है, जबकि भारत ने भी अपने रणनीतिक जवाब तैयार किए हैं।
यह प्रतिस्पर्धा केवल सैन्य या रणनीतिक नहीं है, बल्कि आर्थिक, तकनीकी और कूटनीतिक आयामों को भी समेटे हुए है। हिंद महासागर में वर्चस्व की यह जंग आने वाले दशकों में एशिया और वैश्विक भू-राजनीति को आकार देगी।
भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अपनी सीमित संसाधनों के साथ चीन की आर्थिक ताकत का मुकाबला कैसे करे। QUAD जैसी साझेदारियों और द्विपक्षीय संबंधों के माध्यम से भारत ने एक प्रभावी रणनीति विकसित की है, लेकिन इसे और मजबूत करने की आवश्यकता है।
अंततः, हिंद महासागर की शांति और स्थिरता के लिए दोनों देशों को प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ सहयोग के रास्ते भी खोजने होंगे। समुद्री सुरक्षा, व्यापार की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय स्थिरता सभी के हित में है। newsheadlineglobal.com
आगे भी इस महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा पर नजर रखेगा और विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता रहेगा।